सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए यह कहा है कि एक महिला और पुरुष यदि लंबे समय तक साथ रहते हैं तो उसे शादी ही माना जाएगा. उन्होंने इस बारे में यह भी साफ कर दिया कि इस रिश्ते से पैदा हुए बेटे को उनकी पैतृक संपत्ति पाने का अधिकारी माना जाएगा. उससे यह अधिकार सिर्फ इसी कारण नहीं छीना जाएगा कि उसके माता-पिता ने शादी नहीं की थी.
इस मामले में केरल हाईकोर्ट में यह फैसला किया गया था कि अगर किसी पुरुष और महिला पर शादी का सबूत नहीं है और उस स्थिति में उस रिश्ते से पैदा हुए बेटे को संपत्ति का अधिकारी नहीं माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया और वहां के जस्टिस अब्दुल नजीर और विक्रम नाथ की बेंच ने यह फैसला किया कि अगर कोई भी महिला और पुरुष कई सालों तक पति-पत्नी की तरह साथ में रहते हैं तो उसे शादी माना जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका
इस बेंच ने अपने फैसले में यह भी बताया कि एविडेंस एक्ट की धारा 144 के तहत यह फैसला लिया जाएगा. आपकी जानकारी के लिए बता दें केरल हाई कोर्ट के साल 2009 के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए यह फैसला लिया कि इस तरह के मामले में पैदा हुए बच्चे को पैतृक संपत्ति का अधिकारी माना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान ये कहा कि इस तरह के रिश्ते को तब तक शादी ही माना जाएगा जब तक वह यह साबित नहीं कर देते कि उन दोनों के बीच ऐसा कोई भी रिश्ता नहीं है. लिव इन में रहने वाली दोनों व्यक्तियों को शादीशुदा ही माना जाएगा. इसलिए इस तरह के रिश्ते को शादी ना साबित करने की जिम्मेदारी सिर्फ उस शख्स की होगी जो इस मामले में अपनी आपत्ति दर्ज कराएगा.
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